केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के नए सत्र के पाठ्य में स्वक्रमच्छता अभियान



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केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के नए सत्र के पाठ्य में स्वक्रमच्छता अभियान शामिल किया जाना प्रगतिशीलता और व्यवस्था के गतिशील होने का परिचायक है। यह दो तरह से लाभकारी रहेगा। एक तो स्वच्छता के प्रति छात्र जीवन से ही जागरूकता आएगी तथा दूसरा यह कि नई परंपरा शुरू होगी कि वर्तमान दौर के लिए जो विषय, पहलू या सरोकार प्रासंगिक हंै, उन्हें हर साल पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाए। सीबीएसई की पहल का हरियाणा शिक्षा बोर्ड को भी अनुसरण करना चाहिए। विडंबना रही है कि हरियाणा बोर्ड के पाठ्यक्रम में दशकों तक बदलाव नहीं होता, प्रयोग के नाम पर कुछ नई सुविधाएं स्कूलों में उपलब्ध करवाने का सिलसिला आरंभ होता है जो कुछ कदम चल कर दम तोड़ देता है। पाठ्यक्रम को गतिशील, समयानुकूल और व्यावहारिक रूप देने पर गंभीर पहल नहीं की जाती। परिणाम यह होता है कि विद्यार्थियों की मानसिकता में प्रगतिशीलता नहीं आ पाती जिसका खामियाजा प्रतियोगी परीक्षाओं में उठाना पड़ता है। शिक्षा विभाग को प्रयोगों से अधिक ध्यान पाठ्यक्रम को तार्किक और परिवर्तनशील बनाने पर देना चाहिए। विषय विशेषज्ञों की सामूहिक राय से पाठ्यक्रम को प्रयोगशील बनाना विभाग की प्राथमिकता होनी चाहिए। कुछ शाश्वत तथ्यों को छोड़ दें तो बात सामने आएगी कि पाठ्यक्रम के किसी अध्याय को दसियों साल तक घसीटने का कोई औचित्य नहीं। हरियाणा की ही बात लें तो कन्या संरक्षण, बदतर लिंग अनुपात और सरकारी स्कूलों से लड़कियों का ड्रॉपआउट रोकने के लिए अभिभावकों और बच्चों में जागरूकता लाने के लिए दस वर्ष पूर्व पाठ्यक्रम में अध्याय शामिल किए जाने चाहिए थे लेकिन आज तक ऐसा नहीं हो पाया। भविष्य के लिए भी किसी ठोस पहल की संभावना नजर नहीं आ रही। सीबीएसई ने पाठ्यक्रम में बदलाव की अलख जगाने की कोशिश की है, इसका केवल स्वागत करने से काम नहीं चलने वाला, इसका ठोस अनुसरण करने पर ही पाठ्यक्रम और शिक्षा ढांचे को समयानुकूल और सार्थक रूप देना संभव हो पाएगा। स्वास्थ्य, सामान्य ज्ञान, सामाजिक-आर्थिक-वैज्ञानिक बदलाव की बड़ी घटनाओं को भी पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाए और उसे हर साल अपडेट किया जाए। विभाग को इस तथ्य की गंभीरता को समझना होगा कि पाठ्यक्रम विद्यार्थियों के भविष्य निर्माण का आधार है, वर्षो तक सहेजने व अपरिवर्तित रखे जाने वाला ग्रंथ नहीं। अनुसंधान के माध्यम से बदलाव तो विज्ञान के नियमों, सिद्धांतों में भी आते हैं, फिर पाठ्यक्रम को स्थिर रख कर किस उद्देश्य की पूर्ति होगी।

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