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15 साल बाद जन्म प्रमाणपत्र में दर्ज नहीं हो सकेगा नाम,#अरे..ये गुरुजी तो बड़े चालबाज निकले

जींद, जागरण संवाद केंद्र : 15 साल की उम्र होने के बाद बच्चे का नाम जन्म प्रमाणपत्र में दर्ज नहीं किया जाएगा। यह व्यवस्था प्रदेश सरकार ने सात माह पूर्व कर दी थी, लेकिन अधिकतर लोगों को अब तक इसकी जानकारी नहीं है जिस कारण विभाग के चक्कर लगा रहे हैं। गौर हो कि काफी लोग बच्चों के नाम जन्म प्रमाणपत्र में नहीं लिखवाते। इसके चलते जिन बच्चों की उम्र 15 साल से ज्यादा हो गई है, अब उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अखिल भारतीय अग्रवाल समाज हरियाणा के अध्यक्ष राजकुमार गोयल ने इस संबंध में आरटीआइ के तहत सूचना मांगी थी। उन्होंने पूछा था कि क्यों 15 साल के बाद विभाग नाम नहीं दर्ज कर रहा? और इसके बाद नाम लिखवाने की क्या प्रक्रिया है? विभाग ने स्पष्ट किया है कि 12 सितंबर 2010 तक तो कभी भी बच्चे का नाम जन्म प्रमाणपत्र में दर्ज कराने की सुविधा थी, लेकिन प्रदेश सरकार ने उक्त तिथि के बाद 15 साल बाद जन्म प्रमाणपत्र में नाम दर्ज करने पर पूरी तरह से यह पाबंदी लगा दी है।
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अरे..ये गुरुजी तो बड़े चालबाज निकले
चंडीगढ़, जागरण ब्यूरो : शिक्षा विभाग में आनलाइन तबादलों को लेकर गुरुजनों की नई चालबाजी उजागर हुई है। गुरुजनों ने शिक्षा विभाग की वेबसाइट पर आवेदन कर न केवल अपने प्रतिद्वंद्वी शिक्षकों को दुर्गम तथा पिछड़े इलाकों में भेजने का आवेदन कर दिया, बल्कि कई ऐसे शिक्षकों के आवेदन भी कर डाले, जो अपने वर्तमान कार्य स्थल से तबादले के कतई इच्छुक नहीं हैं। तबादला चाहने अथवा नहीं चाहने वाले गुरुजनों को अपने साथियों की इस चालबाजी का पता तब चला, जब वह स्वयं शिक्षा विभाग की वेबसाइट पर अपनी इच्छा के अनुसार आवेदन करने लगे। वेबसाइट खोलते ही ऐसे शिक्षकों ने अपना आवेदन करना चाहा तो उन्हें जवाब मिला कि उन्होंने पहले ही अपनी इच्छा से शिक्षा विभाग को अवगत करा दिया है। यानि उनका रजिस्ट्रेशन हो चुका है। वेबसाइट पर स्वयं रजिस्ट्रेशन किए बिना रजिस्ट्रेशन हो जाने की सूचना पर गुरुजनों के होश उड़ गए। प्रदेश भर में गुरुजनों की इस आपसी चालबाजी और मजाक का करीब 600 शिक्षक शिकार हुए हैं। शिक्षा विभाग ने व्यवस्था दी थी कि तबादला चाहने वाले और नहीं चाहने वाले शिक्षकों को आनलाइन आवेदन करना होगा। यह समय सीमा 15 जून को समाप्त हो चुकी है। हरियाणा स्कूल लेक्चरर एसोसिएशन (हसला) के अध्यक्ष किताब सिंह मोर के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने शिक्षा मंत्री गीता भुक्कल, मुख्यमंत्री के ओएसडी एमएस चोपड़ा, शिक्षा निदेशक विजयेंद्र कुमार तथा अतिरिक्त निदेशक सतबीर सैनी को इस पूरे गोरखधंधे की जानकारी दी। शिक्षा मंत्री से चली लंबी वार्ता के दौरान विभाग चालबाजी का शिकार हुए शिक्षकों को राहत देने पर राजी हो गया है। शिक्षा मंत्री के निर्देश पर निदेशक विजयेंद्र कुमार ने कहा कि ऐसे शिक्षक जिन्हें अपने साथ धोखा होने का अंदेशा है, वह सोमवार 20 जून शाम पांच बजे तक अपनी निजी मेल-आईडी से आवेदन कर स्थिति स्पष्ट कर सकते हैं। इस मेल में शिक्षकों को अपना फोन नंबर भी लिखना होगा, ताकि विभाग की ओर से फोन कर उनसे कन्फर्मेशन ली जा सके। शिक्षा निदेशक ने बताया कि ऑनलाइन प्रणाली के तहत 15 जून तक प्राप्त सभी स्थानांतरण आवेदनों को संबंधित अध्यापकों के अवलोकनार्थ विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध करवा दिया गया है, ताकि उनमें यदि कोई त्रुटि है तो उसे दूर करवाया जा सके। उन्होंने बताया कि शिक्षा विभाग द्वारा अपने संसाधनों तथा तरीकों से इस बात का पता लगाया जा रहा है कि शरारत करने वाले लोग कौन हैं। शिक्षा विभाग इस कार्य में पुलिस के साइबर सेल की भी मदद ले रहा है।
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स्विस बैंक से कालाधन निकाल रहे धाताधारक
नई दिल्ली, एजेंसी : कालेधन पर दुनिया भर में चल रही सरगर्मी को देखते हुए स्विस बैंकों के खाताधारकों ने धन निकालना शुरू कर दिया है। इसी वजह से पिछले साल कालेधन के पनाहगाह स्विस बैंक की विदेशी संपत्ति में करीब 50 हजार करोड़ रुपये की गिरावट दर्ज की गई है। काफी समय से भारत समेत पूरा विश्व कालाधन को गुप्त और सुरक्षित रखने के लिए स्विस बैंक की आलोचना कर रहा है। हालांकि स्विस बैंक के अधिकारी इस बात से इंकार कर रहे हैं कि डर की वजह से खाताधारक खाते से धन निकाल रहे हैं। वह इसकी वजह कुछ और बता रहे हैं। स्विस नेशनल बैंक के ताजा आंकड़ों के मुताबिक 2010 के आखिर तक विदेशी खातों में जमा 2.49 ट्रिलियन स्विस फ्रैंक (लगभग 13 लाख करोड़ रुपये) घटकर 2.39 ट्रिलियन स्विस फ्रैंक (लगभग 12 लाख 60 हजार करोड़ रुपये) हो गया। हालांकि यहां भारतीयों द्वारा जमा काला धन का निश्चित आंकड़ा नहीं है। अनुमान के मुताबिक यह राशि 1.5 ट्रिलियन डॉलर (लगभग छह लाख 72 हजार करोड़ रुपये) है। स्विस बैंकर्स एसोसिएशन (एसबीए) के अंतरराष्ट्रीय संचार प्रमुख जेम्ल नेसन ने कहा कि यह बदलाव केवल ग्राहकों के बर्ताव से नहीं है बल्कि विदेशी मुद्रा के मूल्य और शेयरों के कारण भी हुआ है। उनके मुताबिक विदेशी खाताधारी अपने धन को स्विस समकक्षों की तुलना में डॉलर और यूरो में ज्यादा रखते हैं। स्विस फ्रैंक के मुकाबले डॉलर और यूरो की कीमत में बदलाव के कारण इस पर बड़ा असर पड़ता है। उन्होंने कहा कि मुद्रा की कीमतों में गिरावट निजी विदेशी ग्राहकों के साथ विदेशी व्यावसायिक और संस्थागत ग्राहकों में भी साफ देखा जा सकता है। स्विस बैंक के सभी खाताधारियों में यह गिरावट बैंक के 4.45 ट्रिलियन स्विस फ्रैंक (लगभग 23 लाख 51 हजार करोड़ रुपये) का करीब 1.3 प्रतिशत है। स्विस संसद ने काला धन मामले में भारत और दूसरे देशों के साथ कर संधि में संशोधन को मान्यता दे दी है। इसके आधार पर सभी देश अपने नागरिकों द्वारा स्विस खातों में जमा काला धन की जानकारी आसानी से ले सकते हैं। गौरतलब है कि इस समय भारत सरकार कालाधन को वापस लाने के लिए विपक्ष, सुप्रीम कोर्ट और नागरिक संगठनों के जबरदस्त दबाव झेल रही है। सरकार ने इस मामले में कई तरह की पहल भी की है।

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